डाकू अंगुलिमाल की कहानी का पूर्ण वर्णन

डाकू अंगुलिमाल की कहानी बहुत पुरानी बात है श्रावस्ती में राजा प्रसेनजित नामक राजा राज करते थे। उनके राज्य में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू था राजकीय उससे बहुत हुई थी, क्योंकि उसने 1000 व्यक्तियों के बाद करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी।

डाकू-अंगुलिमाल
डाकू-अंगुलिमाल

उसके लिए मारे गए लोगों की गिनती याद करना बहुत कठिन था इसीलिए उसने इसका एक सरल उपाय खोज लिया था वह जिन व्यक्ति की हत्या करता है उसकी एक उंगली काट कर अपने गले में पड़ी माला में डाल लेता था।

इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा। उसका नाम सुनते ही लोग कहां पढ़ते थे वह जिधर निकल जाता लोग त्राहि-त्राहि कर उठते थे उसकी क्रूरता की कहानी दूर-दूर तक फैल गई थी।एक बार महात्मा बुद्ध श्रावस्ती आए तो उन्होंने राजा प्रश्न चित्र को बहुत चिंतित पाया उन्होंने राजा से चिंता का कारण पूछा।

राजा ने कहा,भगवान मेरे राज में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू है वह बहुत दूर है उससे मेरी जनता बहुत व्यस्त है इसीलिए मैं चिंतित हूं भगवान अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं

महात्मा बुद्ध बोले श्री राजन जारी रखें मैं तुम्हारी चिंता को अवश्य दूर करूंगा प्रातः काल होते ही महत्वपूर्ण राजा से विदा लेकर उस जंगल की ओर चल दिए जिसमें उंगली मार डाकू रहता था।

जहां से जंगल की सीमा समाप्त होती थी वहां पर राजा ने सिपाही नियुक्त कर रखे थे जो लोगों को उस जंगल में जाने से रोकते थे।

जैसे ही माता बुध उस स्थान पर पहुंचे तो उन्हें ही परिवारों ने रोका भगवान उधर ना जाए उधर जान का खतरा है। क्योंकि इस जंगल में डाकू अंगुलिमाल रहता है।

पहरेदार की आवाज सुनकर महात्मा मुस्कुराए और बोले तुम मेरे लिए किसी प्रकार की चिंता ना करो मुझे कुछ नहीं होगा,

इतना कहकर वह जंगल की ओर चल दिए महात्मा बुद्ध जैसे ही आगे बढ़े जा रहे थे तो उन्हें एक कठोर आवाज सुनाई दी ठहर जा,,

महात्मा बुद्ध रुक गए उन्होंने जैसे ही दृष्टि ऊपर उठाकर देखा तो सामने एक बैंकर मूर्ति खड़ी थी लंबा कद भयानक चेहरा मोटे मोटे होंठ बिखरे हुए बाल लाल लाला के कारण हाथ में नंगी तलवार।

अंगुलिमाल ने महात्मा से कहा कहा आज तुम मेरे शिकार हो और मैं तुम्हारी उंगली अपनी माला में डालूंगा।

बुद्ध ने कहा अवश्य डाल लेन परंतु पहले मेरी एक बात सुनो।

अंगुलिमाल ने अपनी तलवार लहराकर ऊंची आवाज में कहा मैं जानता हूं तुम क्या कहना चाहते हो तुम यहां से बस निकलना चाहते हो तुम तुम्हें तुम्हें आज छोडूंगा नहीं।

महात्मा बुद्ध के बोली नहीं नहीं मैं यहां से भागने की नहीं सोच रहा हूं मैं तो यहां तुमसे ही मिलने आया हूं।

नाखून एम आत्मा को घूरते हुए कहा क्यों

महात्मा बुध बोले तुमसे मिलने को मेरा मन कर रहा था। क्योंकि मैंने तुम्हारा बहुत नाम सुना था।

अंगुलिमाल ने आश्चर्य से बुद्ध की ओर देखा और सोचने लगा कि यह कैसा आदमी है, जहां मेरा नाम सुनकर लोग कहां पर जाते हैं वहां के स्वयं चलकर मेरे पास आया है।

डाकू ने महात्मा सेवा बताओ मुझसे क्या चाहते हो।

महात्मा बुद्ध ने कहा सामने की मिर्च से एक पत्ता तोड़ कर लाओ

उंगली मार गया और सामने के ब्रिज से एक पत्ता तोड़ कर ले आया और महात्मा बुद्ध से बोला बताओ अब क्या करना है।

महात्मा बुद्ध ने शांत स्वर में कहा अब तुम इस पत्ते को वही ले जाकर जोड़ दो जहां से इसे तोड़ कर लाए हो।

अंगुलिमाल बोला ऐसा कैसे हो सकता है।

महात्मा बुद्ध ने कहा क्यों नहीं हो सकता है अवश्य हो सकता है।

अंगुलिमाल,ने विरोध पूर्वक ऊंचे स्वर में कहा ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता है,,

महात्मा बुद्ध ने पूछा क्या तुम केवल तू और ना ही जानते हो जोड़ना नहीं जब तुम निर्माण नहीं कर सकते हो तो बिना क्यों करते हो।

डाकू ने कहा यह पत्ता तोड़ने के लिए तो तुमने ही कहा था।

महात्मा बुद्ध बोले निरपराध लोगों को मारने के लिए तथा उनकी उंगलियों काटने के लिए तुम्हें किसने कहा है। जब तुम किसी को जीवन नहीं दे सकते किसी का जीवन लेने का भी तुम्हें क्या अधिकार है।

महात्मा बुद्ध की बातें सुनकर अंगुलिमाल डाकू आवाज खड़ा रह गया।

बुद्ध ने उससे हे वत्स आनंद विनाश में नहीं निर्माण में है इसीलिए विनाश नहीं निर्माण करना सीखो दूसरों को दुख देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।

अंगुलिमाल बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज आज आपने मेरी आंखें खोल दी।

गौतम बुद्ध प्रेम पूर्वक बोले वत्स उठो जगत के समस्त जिलों से प्रेम करना सीखो सभी के दुख दूर करो सब को सुख दो तभी तो मैं भी आनंद प्राप्त होगा।

अंगुलीमाल ने उसी दिन से हिंसा को छोड़ दिया और महात्मा बुध का शिष्य बन गया

उसने उनसे बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और समाज सेवा के कार्य में लग गया।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

One thought on “डाकू अंगुलिमाल की कहानी का पूर्ण वर्णन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *